लेखनी कहानी -06-Sep-2022# क्या यही प्यार है # उपन्यास लेखन प्रतियोगिता# भाग(13))
गतांक से आगे:-
चंचला एक दम घबरा उठी उसे अंधेरे में कुछ दिखाई नही दे रहा था । लेकिन मुंह पर जिस कदर हाथ रखा हुआ था उस स्पर्श से वो कोई आदमी का हाथ लगता था चंचला एकदम गुस्से से लाल पीली हो गयी
"ठहर कालू ।तेरी इतनी हिम्मत तू रात मे आकर मेरा मुंह दबा रहा है ताकि मै चीख ना सकूं।"
चंचला मन ही मन सोच रही थी कि तभी उस मुंह दबाने वाले शख्स ने एक हाथ से मुंह दबाकर दूसरे से उसके मुंह पर पट्टी बांध दी और उसे कंधे पर लादकर जंगल की ओर ले चला।
चंचला मन ही मन सोच रही थी अगर ये कालू हुआ तो आज इसकी खैर नही बापू से कहकर सौ कोड़े ना लगवाएं तो मेरा नाम भी चंचला नही ।
पर जैसे ही वह शख्स उसे कंधे पर लाद कर ले जा रहा था चंचला को फिर वही अहसास हुआ जो उस दिन राजकुमार सूरज के साथ घोड़े पर बैठकर हुआ था।उसे वैसी ही खुश्बू आ रही थी जैसे राजकुमार के नजदीक जाने से आ रही थी ।
पूर्णिमा की रात थी वो शख्स उसे लेकर लगातार जंगल की ओर बढ़ रहा था ।एक जगह जरा सा मैदान आया तो उसने उसे कंधे से उतारा ।जैसे ही चंचला की उसपर नजर पड़ी वह हैरान रह गयी ।
"आप और यहां ,इस तरह ?"
उसने देखा राजकुमार सूरजसेन उसके मुंह से पट्टी हटा रहा था उसे देखकर चंचला बोली,"सरकार आप इस तरह से मुझे मेरे खेमे से उठा कर लाये …. क्यों?
हम तो सरकार की बांदी है एक हुक्म देते तो तुरंत हाजिर हो जाते ।"
चंचला को ये नही पता था कि सूरज भी उसके प्रति प्यार की भावना रखता है।जब चंचला ने इस तरीके से वार्तालाप किया तो सूरजसेन तड़प कर रह गया वह बोला,"अब अनजान मत बनो मै क्या समझता नही तुम्हारी नज़रों को ।कितना प्यार था तुम्हारी नज़रों मे जब तुम घोड़े से उतर कर खेमे मे जा रही थी। सच बताना क्या तुम्हें मेरी आंखों मे तुम्हारे लिए प्रेम की झलक नही दिखाई देती? जो तुम इस तरीके से बात कर रही हो । सरकार सरकार करके कि हम आपकी बांदी है "
चंचला आंखों में आसूं भर कर बोली,"मेरी इतनी गुस्ताखी।जो मै चांद छूने की जिद करूं ।एक चकोर चांद को दूर से ही निहार सकता है पा नही सकता।"
प्रेम अगन दोनों ओर लगी थी विरह वेदना से दोनों ही जल रहे थे पर परिस्थितियों के वशीभूत वो कह नही पा रहे थे । लेकिन परिस्थितियों के आगे प्रेम जीत गया और राजकुमार सूरजसेन ने दौड़कर चंचला को बाहों मे भर लिया।
"अब मै तुम्हे एक पल भी यहां नही रहने दूंगा।मेरे साथ राजमहल चलो ।हम दोनों परिणय सूत्र में बंधेंगे।मुझे पता है पिताजी इस विवाह के लिए कभी राजी नही होंगे पर मै तुम्हारे लिए राजपाट छोड़ दूंगा।" सूरजसेन उसे बाहों मे भरकर बोला।
चंचला को जैसे दोनों जहान की खुशियां मिल गयी मन चाह जीवन साथी उससे प्यार का इजहार कर रहा था तो वो मना कैसे करती ,पर उसे डर भी लग रहा था समाज क्या ये रिश्ता कबूल करेगा ।बापू को पता चल गया तो एक बारगी वो तो कुछ नही कहे शायद बेटी का प्यार उन्हें कुछ ना कहने दें पर क्या कबीला इस रिश्ते को मंजूर करेगा कदापि नही ।
कालू तो वैसे ही जहर खाता है अगर कोई उसके आसपास फटके भी तो । क्या वो राजकुमार के साथ उसका रिश्ता होने देगा ?
इधर राजा जी भी नाराज होंगे और वो पाप की हकदार बनेगी अगर वो एक बेटे को माता पिता से दूर करेगी तो । यही सब अंतर्द्वंद्व चंचला के मन मे चल रहा था ।वो एक झटके मे राजकुमार सूरज से अलग हो गयी और तड़प कर बोली,"बाबू ये कभी नही हो सकता ।मै तो किसी तरह कबीले के कहर को बर्दाश्त कर लूंगी पर वो तुम्हे नही छोड़े गे।और मै ऐसे पाप की हकदार कैसे बनूं जो एक बेटे को उसके मां बाप से जुदा करदे।नही बाबू नही ये कभी नही हो पायेगा।"चंचला बिलखकर रोने लगी।
इधर सूरज की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी वो बोला,"चंचला मैंने मां को सब बता दिया है मां चिंतित तो है उन्हें भी पता है पिताजी कभी मंजूरी नही देंगे इस विवाह की पर मां कह रही थी कोई उपाय सोचते है ।पर मै दिल के हाथों मजबूर था इसलिए तुम से इस तरह मिलने चला आया और फिर मै ये भी देखना चाहता था कि जो मै सोच रहा हूं वो ठीक है भी कि नही (चंचला उससे प्यार करती है या नही)"
चंचला बोली,"बाबू मै तो उसी समय तुम्हारी हो चुकी थी जब तुमने मुझे भेड़िए से बचाया था ।बस मन मे एक टीस थी कि क्या मै तुम्हे पा सकूंगी? हम बंजारे या तो किसी से प्रेम करते नही और अगर करते है तो हमारी रुह तक उसका इंतजार करती है सदियों तक।"
सूरजसेन ने फिर से चंचला को अपनी बाहों मे भर लिया और बोला,"कुछ भी हो मै तुम्हारे बगैर नही रह सकता अब कुछ हो जाए तुम मेरी हो बस मेरी।" सूरज की आंखों मे तड़प साफ महसूस कर रही थी चंचला।
दोनों ना जाने कितनी देर तक एक दूसरे की बाहों मे समाये रहे फिर राजकुमार सूरज उसका हाथ पकड़ कर घोड़े पर बैठा कर चल पड़ा महल की ओर।
चंचला बोली,"ये क्या कर रहे हो सूरज ?"
सूरजसेन तड़प कर बोला,"बस अब और सहा नही जाता हम आज ही गंधर्व विवाह करेंगे और तुम मेरे महल मे रहो गी मां जब पिताजी को मना लेंगी तो हम धूमधाम से विवाह कर लेंगे।"
ये कहकर सूरजसेन चंचला को लेकर एक मंदिर मे पहुंच गया और शिव पार्वती को साक्षी बनाकर चंचला की मांग मे सिंदूर भर दिया और उसे साथ लेकर महल आ गया।
भोर होने वाली थी ।किसी ने भी सूरजसेन को चंचला के साथ आते नही देखा ।वह चुपचाप उसे एक कक्ष मे ले गया और बोला,"तुम यहां रहो ।जब तक मै दरवाजे पर आकर दस्तक ना दूं तुम दरवाजा मत खोलना।" यह कहकर सूरज अपने कक्ष मे चला गया ।भले ही उन्होंने गंधर्व विवाह किया था।पर अभी दुनिया साक्षी नहीं थी उनके संबंध की । इसलिए उसे छूना तो बहुत दूर उसके पास रहना भी गुनाह समझता था सूरज सेन।
अभी चंचला पलंग पर बैठ कर थोड़ा सुस्ताई ही थी कि तभी दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई ।
(क्रमशः)
राधिका माधव
24-Sep-2022 06:06 PM
बहुत खूब...
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shweta soni
20-Sep-2022 12:50 AM
Very nice
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Priyanka Rani
19-Sep-2022 09:03 PM
Very nice
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